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इतिहास

खगड़िया का वर्तमान भू-भाग जो मुंगेर जिला का ही अंग था वस्तुतः प्राचीन काल में मध्य देश अथवा मध्य भूमि कहलाता था, जहां सर्वप्रथम आर्य थे। महाभारत में मिदैर की एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप् में चर्चा है, जो पूर्वी भारत के बंगा और ताम्रलिप्ति के निकट चंपा नाम से राजधानी के रूप में चर्चित है। प्रारंभ में इस क्षेत्र का सम्पूर्ण भू-भाग अंग प्रदेश के अन्तर्गत था, जिसकी राजाधानी चम्पा (वर्तमान नाथनगर, जिला- भागलपुर) ही थी तथा शासक शूरवीर कर्ण थे। अंग प्रदेश का विस्तार आधुनिक भागलपुर, मंुगेर एवं उत्तर की तरफ कोशी नदी और पूर्णियां जिले के पश्चिमी भाग तक था। राहुल सांकृत्यायण ने ‘‘बुद्धचर्या ’’में उल्लेख किया है कि गंगा का उत्तर भाग अंगुतरप के नाम से जाना जाता था।

मुंगेर के पुराने ज़िले का पहला ऐतिहासिक लेखा ह्वेनसांग की यात्रा में दिखाई देता है, जो उस समय के कुछ हिस्सों का दौरा किया, सातवीं शताब्दी ईसवी की पहली छमाही के करीब था। इसके बाद से जिले के इतिहास में अंतर है नौवीं शताब्दी ईस्वी, जब यह पाल राजाओं के हाथों में हो गया पाल अवधि के दौरान इतिहास मुख्य रूप से शिलालेखों के माध्यम से जाना जाता है। हालांकि, यह सच है कि दोनों ह्यूएन-त्सांग का खाता और पाल शिलालेख मुख्य रूप से मुंगेर जिले के दक्षिण भाग को कवर करते हैं। भारत में मुस्लिम शासन के आगमन के बाद क्षेत्र मुस्लिम शासन के माध्यम से पारित हुआ।

सन् 1762 में मुंगेर प्रसिध्धि में तब आया जब काशिम अली खां ने मुर्शिदाबाद से राजधानी को हटाकर मंुगेर को अपनी राजधानी में तबदील किया। यहाँ उनके द्वारा खजाना, हाथी-घोड़े और इमामबाडा को सजाने के लिए सोने और चांदी का काफी मात्रा में सजावटी समान लाया गया। उन्होंनें अपने लिए यहां आलीशान महल तथा किला बनवाया। किले के समाने 30 तोपें लगायी गई थी। कासिम अली खां के मुख्य जनरल गुरधीन खां, जो एक कपड़ा व्यवसायी था, ने सेना को संगठित कर अंग्रेजो के तरह हथियारों से सुसज्जित किया। इसी सिलसिले में उसने मुंगेर में एक आयुध कारखाना भी स्थापित किया, जो कि वर्तमान में भी चालू अवस्था में है। 1763 ई0 में मीर कासिम अली खां और अंग्रेजों के बीच संधर्ष में उनके हार के फलस्वरूप यह क्षेत्र अंगे्रजो के शासनाधीन हो गया और इसी के साथ ही मुंगेर का शाही अस्तित्व समाप्त हो गया |

ब्रिटिश शासनकाल में सन् 1812 में मुंगेर एक अलग प्रशासनिक केन्द्र के रूप में अस्तित्व में आया। 1814 तक मुंगेर क्षेत्र के विस्तार का स्थानीय अभिलेख नहीं मिलता है। उस समय यह पांच थानों-मुंगेर तारापुर, सुर्यगढ़ा, मल्लेपुर और गोगरी में विभक्त था। सन् 1834 में चकाई परगना रामगढ़ जिले से और बीसहजारी परगना पटना जिले से मुंगेर जिले को स्थानान्तरित किया गया। अनेक छोटे-मोटे परिवर्तन के उपरांत जुन 1874 में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ परगना सखराबादी, दारा, सिंघौल, खड़गपुर और परबत्ता भागलपुर से मुंगेर को स्थानान्तरित हो गया। इसके साथ ही तापसलोदा, सिमरावन और सहुरी का 281 गांव एवं लखनपुर का 613.22 वर्ग मील मंुगेर के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत चला आया। सन् 1870 में बेगुसराय अनुमंडल और 1943-44 में खगड़िया अनुमंडल अस्तित्व में आया तथा खगड़िया अनुमंडल का मुख्यालय खगड़िया को ही बनाया गया।

खगड़िया अनुमंडल जब अस्तित्व में आया तब इसका कुल क्षेत्रफल 752 वर्ग मील था। सन् 1951 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 584625 थी। यहां सात पुलिस थाने- अलौली, खगड़िया, चैथम, गोगरी, परबत्ता, बेलदौर एवं सिमरी बख्तियारपुर- थे सिमरी बख्तयारपुर को सहरसा जिला में समावेष करने के बाद बेलदौर को प्रखंड का दर्जा प्रदान किया गया। खगड़िया जिले के अधिकांश भाग फरकिया परगना के नाम से जाना जाता है।मुंगेर के सन 1926 के डिस्ट्रिक्ट गेजेटर में, इसे “मुंगेर उपखंड के उत्तर पूर्व भाग को एक परगना कहा जाता है, जिसमें 506 वर्ग मील का क्षेत्रफल होता है, जो मुख्य रूप से गोगरी थाना के अंदर आता है।”यह क्षेत्र पूर्व में जमींदारों के एक प्राचीन परिवार का था, जिसका इतिहास बहुत ही कम है जिसे 1787 में भागलपुर के कलेक्टर श्री अदैर ने एकत्रित किया था।15 वीं शताब्दी के करीब, दिल्ली के सम्राट ने क्षेत्र में अराजकता को रोकने के लिए एक राजपूत,विश्वनाथ राय को भेजा।उन्होंने सफलतापूर्वक इस कार्य को पूरा किया और देश के इस हिस्से में एक जमींदारी का अनुदान प्राप्त किया, और बिना किसी रुकावट के दस पीढ़ियों तक उनके वंश का अधिपत्य रहा ।इस परिवार का इतिहास, हालांकि, 18 वीं सदी की पहली तिमाही तक, बहुत कम लेकिन रक्तपात और हिंसा का रिकॉर्ड है।1926 गजटिएयर के प्रकाशन के समय, संपत्ति का अधिक से अधिक हिस्सा बाबू केदारनाथ गोएंका और बाबू देवनंदन प्रसाद की संपत्ति थी।